कविताएँ
पेर लागरकविस्त
सबसे सुंदर होती है...
पृथ्वी सबसे सुंदर होती है
जब रोशनी बुझने लगती है।
आकाश में जितना भी प्रेम है,
धुँधली रोशनी में समाहित है।
खेतों और
नजर आने वाले घरों के ऊपर।
सब शुद्ध स्नेह है, सब सुखदायक है।
दूर किनारे पर खुद प्रभु समतल कर रहे हैं,
सब करीब है, फिर भी सब दूर है अज्ञात,
सब कुछ दिया जाता है
मानव जाति को उधार पर।
सब मेरा है, और मुझसे ले लिया जाएगा,
सब कुछ जल्दी ही मुझसे छीन लिया जाएगा।
पेड़ और बादल, खेत जिनमें मैं टहलता हूँ।
मैं यात्रा करूँगा -
अकेला, नामो-निशान के बिना।
मेरी छाया को तुममें खो जाने दो
मेरी छाया को तुममें खो जाने दो
मुझे खुद को खोने दो
ऊँचे पेड़ों के तले,
जो गोधूलि में अपनी पूर्णता खो देते हैं,
आकाश और रात के सामने आत्मसमर्पण कर लेते हैं।
मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ
मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ।
दूर बहुत दूर एक अजनबी,
उसके लिए मेरा दिल बेचैनी से भरा है
क्योंकि वह मेरे साथ नहीं है।
क्योंकि शायद, उसका अस्तित्व ही नहीं है,।
तुम कौन हो जो अपनी अनुपस्थिति से मेरा दिल भर देते हो?
जो पूरी दुनिया को अपनी अनुपस्थिति से भर देते हो?
तुम जो मौजूद थे, पहाड़ों और बादलों से पूर्व,
समुद्र और हवाओं से पूर्व।
तुम जिसकी शुरुआत सब चीजों की शुरुआत से पहले है,
और जिसकी खुशी और गम सितारों से ज्यादा पुराने हैं।
तुम जो अनंत काल से सितारों की आकाशगंगा
और उनके बीच के घोर अँधेरे से होते हुए
घूमे हो।
तुम जो अकेलेपन से पहले अकेले थे,
और कोई मानव हृदय मुझे भुलाये,
उससे पहले से जिसका दिल बेचैनी से भरा था।
पर तुम मुझे कैसे याद कर सकते हो?
भला समुद्र भी सीप को याद करता है?
एक बार उमड़ जाने के बाद।
अनुवाद : सरिता शर्मा
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