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देशांतर इस पखवारे संपादकीय परिवार

कविताएँ
पेर लागरकविस्त

सबसे सुंदर होती है...

पृथ्वी सबसे सुंदर होती है
जब रोशनी बुझने लगती है।
आकाश में जितना भी प्रेम है,
धुँधली रोशनी में समाहित है।
खेतों और नजर आने वाले घरों के ऊपर।

सब शुद्ध स्नेह है, सब सुखदायक है।
दूर किनारे पर खुद प्रभु समतल कर रहे हैं,
सब करीब है, फिर भी सब दूर है अज्ञात,
सब कुछ दिया जाता है
मानव जाति को उधार पर।

सब मेरा है, और मुझसे ले लिया जाएगा,
सब कुछ जल्दी ही मुझसे छीन लिया जाएगा।
पेड़ और बादल, खेत जिनमें मैं टहलता हूँ।
मैं यात्रा करूँगा - अकेला, नामो-निशान के बिना।

मेरी छाया को तुममें खो जाने दो

मेरी छाया को तुममें खो जाने दो
मुझे खुद को खोने दो
ऊँचे पेड़ों के तले,
जो गोधूलि में अपनी पूर्णता खो देते हैं,
आकाश और रात के सामने आत्मसमर्पण कर लेते हैं।

मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ

मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ।
दूर बहुत दूर एक अजनबी,
उसके लिए मेरा दिल बेचैनी से भरा है
क्योंकि वह मेरे साथ नहीं है।
क्योंकि शायद, उसका अस्तित्व ही नहीं है,।
तुम कौन हो जो अपनी अनुपस्थिति से मेरा दिल भर देते हो?
जो पूरी दुनिया को अपनी अनुपस्थिति से भर देते हो?
तुम जो मौजूद थे, पहाड़ों और बादलों से पूर्व,
समुद्र और हवाओं से पूर्व।
तुम जिसकी शुरुआत सब चीजों की शुरुआत से पहले है,
और जिसकी खुशी और गम सितारों से ज्यादा पुराने हैं।
तुम जो अनंत काल से सितारों की आकाशगंगा
और उनके बीच के घोर अँधेरे से होते हुए
घूमे हो।
तुम जो अकेलेपन से पहले अकेले थे,
और कोई मानव हृदय मुझे भुलाये,
उससे पहले से जिसका दिल बेचैनी से भरा था।
पर तुम मुझे कैसे याद कर सकते हो?
भला समुद्र भी सीप को याद करता है?
एक बार उमड़ जाने के बाद।
                            अनुवाद : सरिता शर्मा

पाँचवाँ दस्ता
(लंबी कहानी)
अमृतलाल नागर

अमृतलाल नागर प्रेमचंद की परंपरा को आगे ले जाने वाले एक विरल कथाकार थे। उन्होंने उपन्यास पर अपने को अधिक केंद्रित किया और उसकी तुलना में कहानियाँ बहुत ही कम लिखीं। पर जितनी लिखीं, वे कहानियाँ ही उन्हें पहली पंक्ति के शीर्ष कहानीकारों में जगह देती हैं। यहाँ प्रस्तुत उनकी लंबी कहानी पाँचवाँ दस्‍ता उनकी प्रतिनिधि कहानियों में से एक है। यह कहानी इस बात का चित्रण करती है कि कैसे किसी एक व्यक्ति के वर्ग बदल जाने से सारे के सारे संबंध बदल जाते हैं। और कुछ नए तरह के घात-प्रतिघात सामने आते हैं। कहानी में देहातिन युवती तारा का जीवन तब बदल जाता है जब उसकी शादी उच्चवर्गीय जंडैल साहब से हो जाती है। इसके बाद एकमात्र इसी वजह से तारा अपने आसपास के लोगों की ईर्ष्या, जलन, इज्जत आदि तमाम भावनाओं का शिकार होती है। इस हद तक कि वह अपना स्वाभाविक जीवन खो देती है पर आखिरकार वह अपनी सहजता अर्जित करती है। बेहद पठनीय कहानी।

लंबी कविता
प्रेमशंकर शुक्ल
सूत-कपास

निबंध
कुबेरनाथ राय
भाषा बहता नीर

आलोचना
राकेश बिहारी
आंदोलनरहित समाज में कहानी का भविष्य

विमर्श
अवंतिका शुक्ला
‘अच्छी’ लड़कियाँ प्रेम नहीं करतीं

पड़ोस
विनोद दास
बांग्ला कहानी का वैभव

सिनेमा
विमल चंद्र पांडेय
जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया : प्यासा
अबकी बार, ले चल पार, ले चल पार ओ मेरे माँझी : बंदिनी

कुछ और कहानियाँ
अशोक कुमार
साइबरेटी
आत्म-हत्या
अपना-अपना शून्य

कविताएँ
महेंद्र भटनागर

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(कुलपति)

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ISSN 2394-6687

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